Description
“जूठन – दूसरा खंड” में ओमप्रकाश वाल्मीकि अपने जीवन के उन अनुभवों को साझा करते हैं, जो पहले भाग के बाद उनके जीवन में घटित हुए। इस खंड में वे एक दलित लेखक, कार्यकर्ता, और संवेदनशील सामाजिक विचारक के रूप में सामने आते हैं। वे जातिगत भेदभाव, सामाजिक संघर्ष, साहित्यिक यात्रा और आत्मबोध की प्रक्रिया को गहराई से उजागर करते हैं।
यह पुस्तक एक व्यक्तिगत कथा होने के साथ-साथ एक सामाजिक दस्तावेज भी है, जो भारतीय समाज में जातिगत विषमता, सांस्कृतिक उत्पीड़न, और दलित अस्मिता के सवालों को सामने लाती है। लेखक ने अपने साहित्यिक संघर्ष, सामाजिक गतिविधियों, और व्यक्तिगत अनुभवों को सहज और प्रभावशाली भाषा में प्रस्तुत किया है।
Reviews
There are no reviews yet.